सत्यमंच वेब डेस्क
दिल्ली विधानसभा चुनाव के 5 फरवरी, 2025 को मतदान होना है। नतीजे 8 फरवरी को आने वाले हैं। मतदान से पहले सारी पार्टियों ने पूरा जोर लगा दिया है कि वोटरों को अपने पक्ष में किया जाए। भाजपा और AAP अपने बड़े नेताओं समेत मैदान में उतरी हुई हैं। कॉन्ग्रेस भी इस बार जोर लगा रही है। भाजपा जहाँ ढाई दशक का सूखा खत्म करना चाहती है तो वहीं AAP हैट्रिक लगाना चाहती है। कॉन्ग्रेस भी अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की जुगत में है।
सर्वे ने बढ़ाई AAP की चिंता
इस बीच सर्वे एजेंसी सी वोटर का एक सर्वे सामने आया है, जिससे AAP की चिंता बढ़ सकती है। 1 फरवरी तक जुटाए गए डाटा के हिसाब से सी वोटर ने यह सर्वे दिया है। सी वोटर के सर्वे के अनुसार, दिल्ली की 43.9% जनता मौजूदा AAP सरकार के कामकाम से नाराज है। इन लोगों ने कहा है कि वह सरकार में बदलाव चाहते हैं।
वहीं 38.3% लोगों का कहना है कि वह सरकार के कामकाज से नाराज नहीं हैं और उसे बदलना नहीं चाहते। वहीं 10.9% आबादी ऐसी भी है जो सरकार के कामकाज से नाराज तो है लेकिन सरकार में बदलाव नहीं चाहती। ऐसे में सबसे अधिक तादाद उनकी ही है, जो सरकार से नाराज हैं।
सी वोटर के ही सर्वे में जनवरी में 46.9% लोगों ने कहा था कि वह सरकार से नाराज नहीं है और कोई बदलाव नहीं चाहते। बदलाव ना चाहने वालों की संख्या अब घट गई है। यह AAP के लिए चिंता का सबब बन सकती है। क्योंकि अगर वो लोग, जो नाराज हैं, बदलने के मूड में आते हैं तो AAP को दिक्कत होगी।
5 बड़े फैक्टर तय करेंगे चुनाव
दिल्ली चुनाव 5 बड़े फैक्टर तय करेगे कि सत्ता में AAP बनी रहेगी या बदलाव होगा। इसमें सबसे पहला फैक्टर मुस्लिम वोट का बँटवारा होगा। दिल्ली में लगभग 13% मुस्लिम वोट है। यह वोट AAP के दिल्ली की राजनीति में आने से पहले कॉन्ग्रेस के पास था। 2015 और 2020 के चुनाव में यह वोट AAP के पास चला गया।
इसमें अगर कॉन्ग्रेस सेंध लगाती है तो AAP को सीट और वोट शेयर, दोनों का नुकसान होना तय है। इस बार कॉन्ग्रेस चुनाव में सीधे हमले केजरीवाल पर कर रही है, ऐसे में AAP को नुकसान हो सकता है। वहीं दूसरा बड़ा फैक्टर दलित वोट है।
यह वोट भी कभी कॉन्ग्रेस के पास हुआ करता था। इसमें AAP के अलावा भाजपा ने भी सेंध लगाई है। दलित वोट पर भाजपा दिल्ली में हरियाणा और महाराष्ट्र की तरह स्थानीय स्तर पर काम कर रही है। भाजपा ने दलितों को भरोसा दिया है कि वह पहले से चल रही स्कीम जारी रखेंगे और नई स्कीम भी लाएँगे।
जो दलित बस्तियां झुग्गी-झोपड़ी वाली हैं, उनमें भाजपा ने पक्का घर देने का वादा किया है। इससे भी बड़ा फर्क पड़ने का अनुमान है। वहीं इस चुनाव में चेहरे की लड़ाई भी बड़ी है। पिछले चुनाव के मुकाबले केजरीवाल की छवि को धक्का लगा है।
शराब घोटाला मामले में आरोप और जेल के चलते उनका पर्सनल ब्रांड उतना मजबूत नहीं रहा है, वहीं कुछ ही महीनों के लिए सीएम बनाई गई आतिशी भी उस तरह की लोकप्रियता नहीं बटोर सकी हैं। वहीं दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी का जलवा बरकरार है। वोटर के मन में उसको लेकर कोई बदलाव नहीं है।
चुनाव में वादे भी बड़ा रोल निभा रहे हैं। भाजपा इस बार केजरीवाल के ‘मुफ्त वादों’ की राजनीति का मुकाबला नहले पे दहला मार के कर रही है। उसने दिल्ली में महिला योजना के तहत सबसे अधिक ₹2500 का वादा किया है। पुरानी स्कीमें भी चलाते रहने का वादा भाजपा ने किया है।
कॉन्ग्रेस का वोट भी पलट सकता है सत्ता
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस का प्रदर्शन चुनाव का रुख मोड़ सकता है। कॉन्ग्रेस का प्रदर्शन दिल्ली में लगातार गिरा है। इसका सीधा फायदा AAP को हुआ है। कॉन्ग्रेस का वोट पूरी तरह से AAP को शिफ्ट हुआ है। भाजपा के चुनाव ना जीतने के बाद भी राज्य में 35%-40% वोट उसका लगातार बना हुआ है।
वहीं दूसरी तरफ कॉन्ग्रेस का 2008 के चुनाव के बाद से वोट लगातार खिसका है। 2008 में जहाँ कॉन्ग्रेस को 35% वोट मिला था तो वहीं 2013 में यह घट कर 24% हो गया। 2015 के चुनाव में कॉन्ग्रेस 9.7% पर आ गई और 2020 में तो वह 4% पर आकर अटक गई।
कॉन्ग्रेस का ख़ोया हुआ वोटबैंक सीधे तौर पर AAP को फायदा पहुँचा रहा है। कॉन्ग्रेस ने 2025 चुनाव में ‘करो या मरो’ वाली रणनीति से काम किया है। वह केजरीवाल से अपना वोट बैंक वापस लेना चाहती है। उसका मानना है कि केजरीवाल भले ही हार जाएँ पर यदि उसका वोट बैंक बढ़ा तो भविष्य में उसे फायदा मिल सकता है।
कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी तक केजरीवाल पर सीधे हमले कर रहे हैं। शीशमहल, शराब घोटाल और यमुना को लेकर केजरीवाल को घेरा जा रहा है। कॉन्ग्रेस स्थानीय स्तर पर AAP को नुकसान पहुँचाना चाहती है। अगर कॉन्ग्रेस का वोट शेयर वापस 10% पार हुआ तो केजरीवाल को काफी दिक्कत होगी।
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