भारतीय इतिहास की जब भी बात होती है, तो उसमें राणा सांगा और बाबर का संघर्ष एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज है। 16वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप में सत्ता की लड़ाई चरम पर थी, और इसमें राणा सांगा तथा बाबर की भूमिकाएँ काफी महत्वपूर्ण रहीं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि किस प्रकार राणा सांगा ने मुगल आक्रमणकारियों का सामना किया और क्या उन्होंने वास्तव में बाबर को भारत बुलाने का निमंत्रण दिया था।
राणा सांगा: मेवाड़ का वीर योद्धा
राणा सांगा, जिनका पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था, 1508 ईस्वी में मेवाड़ के शासक बने। वे एक बहादुर और दूरदर्शी शासक थे, जिन्होंने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े। उनका उद्देश्य उत्तरी भारत में राजपूत शक्ति को मजबूत करना था। राणा और बाबर का संघर्ष इस बात का प्रमाण है कि भारतीय योद्धाओं ने विदेशी आक्रमणकारियों को रोकने के लिए कितने कठिन प्रयास किए।
राणा सांगा का जीवन त्याग, बलिदान और संघर्ष से भरा हुआ था। उन्होंने अपने राज्य का विस्तार करने के लिए गुजरात, मालवा और दिल्ली सल्तनत के खिलाफ कई युद्ध लड़े। उनके शरीर पर 80 से अधिक जख्म थे, एक हाथ कट चुका था, एक आँख जा चुकी थी, लेकिन फिर भी वे युद्ध में डटे रहे।
बाबर का भारत आगमन और उसकी महत्वाकांक्षाएँ | राणा सांगा और बाबर का संघर्ष
बाबर, जो फरगना (वर्तमान उज़्बेकिस्तान) का शासक था, तैमूर लंग का वंशज था। उसने अपने राज्य का विस्तार करने के लिए कई अभियानों का नेतृत्व किया। 1526 में, उसने इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया और मुगल साम्राज्य की नींव रखी। राणा और बाबर का संघर्ष इसी दौर में सामने आया जब राणा सांगा ने बाबर के बढ़ते प्रभाव को चुनौती दी।
बाबर की भारत में दिलचस्पी का मुख्य कारण यहां की अपार संपदा और स्थायी सत्ता की स्थापना थी। उसके पास युद्ध कौशल था और उसने अपनी सेना को तुर्की और मंगोल शैली में प्रशिक्षित किया था, जिससे उसकी सैन्य शक्ति अत्यधिक प्रभावशाली थी।
क्या राणा सांगा ने बाबर को बुलाया था?
इतिहासकारों के बीच यह एक विवादास्पद विषय है कि क्या राणा और बाबर का संघर्ष इस कारण हुआ कि राणा सांगा ने बाबर को भारत आने के लिए आमंत्रित किया था। कुछ स्रोतों का मानना है कि राणा सांगा ने बाबर से इब्राहिम लोदी को हराने के लिए मदद मांगी थी, लेकिन इस दावे के पर्याप्त ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलते।
दूसरी ओर, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि बाबर ने अपनी महत्वाकांक्षा के कारण भारत पर आक्रमण किया और राणा सांगा से किसी प्रकार की सहायता नहीं मांगी। हालांकि, जब बाबर ने दिल्ली और आगरा पर कब्ज़ा कर लिया, तो राणा सांगा को लगा कि बाबर उनकी स्वतंत्रता के लिए खतरा बन सकता है। इसी कारण उन्होंने बाबर के खिलाफ एक शक्तिशाली राजपूत गठबंधन बनाया।
खानवा का युद्ध: राणा सांगा बनाम बाबर
1527 ईस्वी में, राणा और बाबर के बीच ऐतिहासिक खानवा का युद्ध हुआ। यह युद्ध राणा और बाबर का संघर्ष की चरम सीमा थी। राणा ने कई राजपूत राजा और अफगान सरदारों के साथ मिलकर बाबर की सेना को चुनौती दी।
युद्ध की प्रमुख घटनाएँ:
- सेनाओं का आकार: राणा सांगा की सेना में लगभग 80,000 सैनिक थे, जबकि बाबर की सेना में मात्र 25,000 सैनिक थे। हालांकि, बाबर की सेना में तोपों और घुड़सवार सैनिकों की संख्या अधिक थी।
- बाबर की सैन्य रणनीति: बाबर ने अपनी तुर्की शैली की सैन्य रणनीति अपनाई और “तुलुगमा” पद्धति का उपयोग किया, जिससे उसकी सेना ने राजपूत योद्धाओं को घेर लिया।
- राणा सांगा की वीरता: राणा ने बहादुरी से युद्ध किया, लेकिन अंततः वे घायल हो गए और उन्हें युद्ध से हटना पड़ा। उनके हटने के बाद उनकी सेना में हताशा फैल गई और बाबर को जीत मिल गई।
युद्ध के परिणाम और प्रभाव
खानवा की लड़ाई भारतीय इतिहास की सबसे निर्णायक लड़ाइयों में से एक थी। यह राणा और बाबर का संघर्ष का अंतिम चरण था, जिसमें बाबर ने जीत हासिल कर ली। इस युद्ध के बाद:
- भारत में मुगल शासन की जड़ें और मजबूत हो गईं।
- राजपूत शक्ति कमजोर हो गई, जिससे मुगलों को उत्तरी भारत पर नियंत्रण करने में आसानी हुई।
- बाबर ने खुद को “गाजी” (धर्मयोद्धा) घोषित किया और इस जीत को इस्लाम की विजय के रूप में प्रस्तुत किया।
राणा सांगा की विरासत
हालांकि राणा सांगा खानवा के युद्ध में पराजित हुए, लेकिन उन्होंने भारतीय इतिहास में अपनी वीरता, त्याग के कारण अमर स्थान प्राप्त किया। उनकी रणनीति, संघर्ष और बलिदान ने आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का कार्य किया। राणा और बाबर का संघर्ष एक ऐसा अध्याय है, जो यह दर्शाता है कि किस तरह भारतीय योद्धाओं ने विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी।
राणा और बाबर का संघर्ष भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सिर्फ दो शासकों के बीच की लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह भारत की स्वतंत्रता और विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ किए गए संघर्ष की भी कहानी थी। राणा की वीरता और बाबर की रणनीति दोनों ही इस ऐतिहासिक गाथा के महत्वपूर्ण पहलू हैं।