पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अक्सर अपने विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहती हैं। हाल ही में उन्होंने महाकुंभ को ‘मृत्युकुंभ’ कहकर हिंदू समाज की आस्था पर गहरा आघात किया है। उनका यह बयान न केवल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेताओं के निशाने पर आ गया है, बल्कि आम हिंदू नागरिकों में भी भारी आक्रोश पैदा कर चुका है। सवाल यह उठता है कि क्या यह बयान केवल एक राजनीतिक चाल थी, या इसके पीछे एक गहरी हिंदू-विरोधी मानसिकता छिपी हुई है? इस लेख में हम ममता बनर्जी के मृत्युकुंभ बयान का विश्लेषण करेंगे, बीजेपी का इस पर क्या जवाब रहा, और आम भारतीय हिंदू इस बयान को कैसे देखता है।
यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने हिंदू संस्कृति और परंपराओं के खिलाफ बयान दिया हो। इससे पहले भी वह राम नवमी, दुर्गा पूजा विसर्जन, और हिंदू त्योहारों पर प्रतिबंध लगाकर चर्चा में रह चुकी हैं।
ममता बनर्जी का ‘मृत्युकुंभ’ बयान और विवाद
महाकुंभ मेला भारत का सबसे पवित्र धार्मिक आयोजन माना जाता है, जिसे करोड़ों श्रद्धालु हर 12 साल में संगम तट पर मनाते हैं। यह न केवल आध्यात्मिकता का केंद्र है, बल्कि इसे सनातन संस्कृति की पहचान भी माना जाता है। ऐसे में, जब ममता बनर्जी ने इस पवित्र आयोजन को ‘मृत्युकुंभ‘ कहा, तो यह स्वाभाविक रूप से हिंदू समाज की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला था।
ममता बनर्जी के इस बयान को लेकर कई सवाल उठते हैं:
- क्या यह बयान एक सोची-समझी रणनीति थी ताकि एक विशेष समुदाय को खुश किया जा सके?
- क्या उन्होंने जानबूझकर हिंदू धार्मिक आयोजनों को बदनाम करने की कोशिश की?
- क्या यह उनका हिंदू-विरोधी रवैया दर्शाता है?
बीजेपी का पलटवार: ‘ममता बनर्जी हिंदू-विरोधी’
ममता बनर्जी के ‘मृत्युकुंभ’ बयान के बाद बीजेपी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने इसे सनातन धर्म पर हमला करार दिया और कहा कि ममता बनर्जी का यह बयान उनकी हिंदू-विरोधी मानसिकता को उजागर करता है। बीजेपी नेताओं का मानना है कि ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं और इसलिए वह हिंदू धर्म से जुड़ी हर चीज का विरोध करती हैं।
बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह ने कहा:
“ममता बनर्जी ने हिंदू समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। यह वही मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने दुर्गा विसर्जन पर रोक लगाई थी और अब कुंभ पर हमला कर रही हैं।”
बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने भी ट्वीट कर लिखा:
“महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन है, लेकिन ममता बनर्जी इसे ‘मृत्युकुंभ’ कहकर हिंदू धर्म का अपमान कर रही हैं।”
बीजेपी ने यह भी आरोप लगाया कि ममता बनर्जी केवल मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति कर रही हैं और इसलिए बार-बार हिंदू धार्मिक आयोजनों को निशाना बना रही हैं।
आम भारतीय हिंदू की नजर में इस बयान के मायने
एक आम हिंदू नागरिक के लिए महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि उनकी आध्यात्मिक आस्था और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। ऐसे में, जब एक मुख्यमंत्री इस आयोजन का अपमान करती हैं, तो यह सवाल उठता है कि क्या हिंदू समाज के साथ ऐसा व्यवहार उचित है?
आम भारतीय हिंदू इस बयान को कुछ इस तरह देखता है:
- यह हिंदू धर्म पर सीधा हमला है, जिसे अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
- अगर किसी और धर्म के धार्मिक आयोजन पर इस तरह की टिप्पणी होती, तो क्या प्रतिक्रिया वही होती?
- क्या यह बयान ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति का हिस्सा है?
हिंदू संगठनों और आम नागरिकों ने ममता बनर्जी के बयान का कड़ा विरोध किया है और इसे वापस लेने की मांग की है।
ममता बनर्जी का हिंदू-विरोधी चरित्र: कुछ उदाहरण
यह पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी पर हिंदू-विरोधी होने के आरोप लगे हैं। इससे पहले भी उन्होंने कई मौकों पर हिंदू धर्म और परंपराओं के खिलाफ फैसले लिए हैं।
1. दुर्गा पूजा विसर्जन पर रोक: 2017 में ममता बनर्जी ने मुहर्रम के कारण दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह हिंदू समुदाय के लिए बड़ा झटका था।
2. राम नवमी पर हिंसा: पश्चिम बंगाल में राम नवमी जुलूस निकालने पर टीएमसी सरकार ने सख्त कार्रवाई की और कई हिंदू संगठनों को रोका गया।
3. टीएमसी का मुस्लिम तुष्टीकरण: बंगाल में मदरसों को विशेष अनुदान दिया जाता है, लेकिन हिंदू संस्थानों के लिए ऐसी कोई योजना नहीं।
इमामों को वेतन दिया जाता है, लेकिन पुजारियों को नहीं।
हिंदू मंदिरों की जमीनें हड़पी जाती हैं, लेकिन मस्जिदों को संरक्षण दिया जाता है।
ममता बनर्जी की राजनीति हिंदू धर्म विरोधी?
ममता बनर्जी के मृत्युकुंभ बयान से एक बार फिर साबित हुआ कि वे हिंदू धर्म के प्रति नकारात्मक रवैया रखती हैं। यह बयान केवल एक राजनीतिक गलती नहीं बल्कि उनकी हिंदू-विरोधी मानसिकता का प्रतिबिंब है। बीजेपी ने इस बयान का कड़ा विरोध कर हिंदू समाज को एकजुट करने की कोशिश की है, और आम हिंदू नागरिक इसे एक बड़े अपमान के रूप में देख रहा है। अगर इसी तरह की बयानबाजी जारी रही, तो 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में यह ममता बनर्जी के खिलाफ बड़ा मुद्दा बन सकता है। क्या अब समय आ गया है कि हिंदू समाज ऐसे नेताओं को सबक सिखाए जो उनकी आस्था पर बार-बार हमला कर रहे हैं?