भारत में न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही: सुधार की आवश्यकता
भारत में न्यायपालिका का एक अनूठा स्थान है, जहां न्यायाधीश खुद को नियुक्त करते हैं, अपने ही मामलों की जांच करते हैं और जवाबदेही के किसी भी प्रयास का प्रतिरोध करते हैं। यह प्रणाली समय-समय पर सवालों के घेरे में आती रही है, क्योंकि इसमें पारदर्शिता की कमी देखी जाती है। लोकतंत्र में जब कार्यपालिका और विधायिका को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाया जाता है, तो न्यायपालिका इससे अलग क्यों होनी चाहिए? न्यायिक सुधार की आवश्यकता अब पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है।
न्यायपालिका की नियुक्ति प्रणाली पर सवाल
भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति का कोलेजियम सिस्टम न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए बनाया गया था, लेकिन यह प्रणाली समय के साथ पारदर्शिता की कमी और भाई-भतीजावाद के आरोपों से घिर गई। कोलेजियम प्रणाली के तहत सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीश खुद ही नए न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश करते हैं। इस प्रक्रिया में सरकार की भूमिका बेहद सीमित होती है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह व्यवस्था वास्तव में निष्पक्ष है?
अमेरिका, ब्रिटेन और कई अन्य लोकतांत्रिक देशों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक पारदर्शी और बहु-स्तरीय चयन प्रक्रिया होती है, जिसमें कार्यपालिका, विधायिका और नागरिक समाज की भूमिका होती है। भारत में इस प्रक्रिया को अधिक लोकतांत्रिक और पारदर्शी बनाने के लिए गंभीर सुधारों की जरूरत है।
न्यायपालिका की जवाबदेही क्यों महत्वपूर्ण है?
जब अन्य संवैधानिक संस्थानों को जवाबदेही के दायरे में लाया जाता है, तो न्यायपालिका को इस प्रक्रिया से बाहर रखने का क्या औचित्य है? भारत में न्यायाधीशों पर कोई बाहरी अनुशासनात्मक नियंत्रण नहीं होता। वे अपने ही मामलों की जांच करते हैं और निर्णय लेते हैं, जिससे न्यायिक जवाबदेही पर संदेह पैदा होता है।
कई बार, हाई प्रोफाइल मामलों में न्यायिक प्रक्रियाएं लंबी खिंचती हैं और फैसलों में पक्षपात की आशंका भी व्यक्त की जाती है। यदि कोई न्यायाधीश भ्रष्टाचार या पक्षपात में लिप्त पाया जाता है, तो उसे हटाने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल और मुश्किल होती है। संसद में महाभियोग की प्रक्रिया एक लंबी और जटिल प्रणाली है, जो अब तक बहुत कम न्यायाधीशों के खिलाफ सफलतापूर्वक लागू की गई है।
न्यायिक सुधार क्यों आवश्यक हैं?
भारत में न्यायिक सुधार की जरूरत इसलिए भी अधिक महसूस की जा रही है क्योंकि आम जनता को त्वरित और निष्पक्ष न्याय नहीं मिल पा रहा है। करोड़ों मुकदमे अदालतों में लंबित हैं, जिससे न्याय में देरी हो रही है। एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका लोकतंत्र की रीढ़ होती है, लेकिन जब यह प्रणाली पारदर्शी नहीं होती, तो नागरिकों का न्याय व्यवस्था पर विश्वास डगमगाने लगता है।
न्यायपालिका में जवाबदेही और पारदर्शिता लाने के लिए निम्नलिखित सुधारों की आवश्यकता है:
- न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रणाली में बदलाव: कोलेजियम सिस्टम को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) जैसी संस्था को फिर से लागू करने की आवश्यकता है, जिसमें कार्यपालिका और सिविल सोसाइटी की भागीदारी हो।
- न्यायाधीशों पर निगरानी तंत्र: एक स्वतंत्र न्यायिक ओंबड्समैन की नियुक्ति की जानी चाहिए, जो न्यायपालिका से संबंधित शिकायतों की जांच करे।
- न्यायिक प्रक्रिया को तेज करने के लिए तकनीकी सुधार: अदालतों में डिजिटल प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाना चाहिए, जिससे मामलों की सुनवाई तेजी से हो।
- सजा प्रक्रिया में कठोरता: न्यायाधीशों के भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने पर कठोर सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए।
भारत की न्यायिक प्रणाली को अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी और निष्पक्ष बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। न्यायपालिका का स्वतंत्र रहना अनिवार्य है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह पूरी तरह से जवाबदेही से मुक्त हो। जब लोकतांत्रिक प्रणाली के अन्य स्तंभों को पारदर्शिता और जवाबदेही के दायरे में लाया जाता है, तो न्यायपालिका भी इससे अछूती नहीं रह सकती। न्यायिक सुधार समय की मांग है, जिससे भारत में न्याय व्यवस्था अधिक प्रभावी और निष्पक्ष बन सके।