सद्गुरु जग्गी वासुदेव द्वारा स्थापित ईशा फाउंडेशन को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से एक महत्वपूर्ण राहत मिली है। तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनपीसीबी) द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें ईशा फाउंडेशन के कोयंबटूर स्थित आश्रम को पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता से मुक्त किया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
ईशा फाउंडेशन का कोयंबटूर स्थित आश्रम, जो आध्यात्मिक और योग गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है, पिछले कुछ वर्षों से पर्यावरणीय मंजूरी से संबंधित विवादों में घिरा हुआ था। टीएनपीसीबी ने आरोप लगाया था कि आश्रम का निर्माण बिना उचित पर्यावरणीय मंजूरी के किया गया है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंच सकता है। इस संदर्भ में, बोर्ड ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद, टीएनपीसीबी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने टीएनपीसीबी की याचिका को खारिज करते हुए मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि आश्रम के निर्माण के समय लागू नियमों के अनुसार, इस प्रकार की परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय मंजूरी आवश्यक नहीं थी। इसके अलावा, ईशा फाउंडेशन के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अदालत को आश्वासन दिया कि फाउंडेशन सभी केंद्रीय कानूनों का पालन करेगा और भविष्य में किसी भी अनधिकृत निर्माण से बचेगा।
आगे की दिशा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि यदि भविष्य में आश्रम का विस्तार किया जाता है, तो ईशा फाउंडेशन संबंधित प्राधिकरण से आवश्यक अनुमतियाँ प्राप्त करेगा। यह निर्णय न केवल ईशा फाउंडेशन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि अन्य धार्मिक और आध्यात्मिक संगठनों के लिए भी एक मिसाल कायम करता है, जो पर्यावरणीय नियमों के पालन में संलग्न हैं।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव और ईशा फाउंडेशन को सुप्रीम कोर्ट से मिली यह राहत उनके आश्रम की गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने में सहायक होगी। यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण और धार्मिक संस्थानों के संचालन के बीच संतुलन स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।