विपक्ष ने दावा किया कि स्मृति ईरानी कभी USAID की एंबेसडर थीं और इसी आधार पर वे भारतीय जनता पार्टी को निशाने पर ले रहे हैं। लेकिन हकीकत यह है कि यह दावा पूरी तरह झूठा, भ्रामक और दुष्प्रचार का हिस्सा है। आइए जानते हैं इस पूरे मामले की सच्चाई। (स्मृति ईरानी और USAID)
भारतीय राजनीति में जब तर्क और नीतियों से लड़ाई जीतना मुश्किल हो जाता है, तो विपक्ष झूठ, अफवाहों और दुष्प्रचार का सहारा लेता है। कांग्रेस और उसके लेफ्ट-लिबरल समर्थक आज इसी रणनीति पर चल रहे हैं। इस बार उन्होंने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और USAID के बीच एक मनगढ़ंत संबंध जोड़कर जनता को गुमराह करने की कोशिश की है।
क्या वाकई स्मृति ईरानी USAID की एंबेसडर थीं?
सच्चाई यह है कि स्मृति ईरानी USAID की कभी भी आधिकारिक एंबेसडर नहीं रही हैं। यह दावा पूरी तरह से झूठा है और इसका कोई आधार नहीं है। दरअसल, स्मृति ईरानी को वर्ष 2002 से 2005 तक “Oral Rehydration Salts (ORS)” कार्यक्रम के लिए WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) द्वारा गुडविल एंबेसडर नियुक्त किया गया था। इस कार्यक्रम को USAID ने भी सपोर्ट किया था, लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि वे USAID की एंबेसडर थीं।
तो फिर यह झूठ क्यों फैलाया जा रहा है?
विपक्ष जानता है कि मोदी सरकार की बढ़ती लोकप्रियता और बीजेपी के राष्ट्रवादी एजेंडे को कमजोर करना उनके लिए आसान नहीं है। इसलिए, वे फर्जी नैरेटिव गढ़कर जनता को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं। स्मृति ईरानी और USAID को जोड़कर कांग्रेस यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि बीजेपी खुद विदेशी ताकतों से जुड़ी हुई है, जबकि असलियत कुछ और ही कहती है।
WHO और USAID: क्या दोनों एक ही संगठन हैं?
यहां एक और महत्वपूर्ण तथ्य समझने की जरूरत है। WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) एक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन है, जो पूरी दुनिया में स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाता है। USAID (United States Agency for International Development) एक अमेरिकी सरकारी एजेंसी है, जो विभिन्न विकासशील देशों में सहायता देने का दावा करती है।
जब स्मृति ईरानी को WHO ने ORS कार्यक्रम के लिए गुडविल एंबेसडर नियुक्त किया था, तब यह कार्यक्रम USAID सहित कई अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग से चलाया गया था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे USAID की आधिकारिक एंबेसडर थीं। यह ठीक उसी तरह है जैसे अगर कोई भारतीय संगठन WHO के किसी कार्यक्रम में सहयोग करे, तो इसका मतलब यह नहीं कि WHO भारत सरकार के अधीन आ गया!
The World Health Organization (WHO) appointed Smriti Irani as the Oral Rehydration Salts (ORS) Goodwill Brand Ambassador from 2002 to 2005. At the time, she was a household name due to the immense popularity of the television serial Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi.
The WHO… https://t.co/nlzSG7kzOz pic.twitter.com/AOwUKUydSk
— Amit Malviya (@amitmalviya) February 18, 2025
विपक्ष की चालाकी: अधूरी सच्चाई, पूरी तरह से झूठ
विपक्ष का यह दावा सिर्फ एक प्रोपेगेंडा है, जिसमें वे अधूरी सच्चाई का इस्तेमाल कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। वे यह नहीं बताते कि स्मृति ईरानी को केवल ORS कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार के लिए WHO द्वारा चुना गया था। उस समय, वे एक लोकप्रिय टेलीविजन अभिनेत्री थीं, और उनकी प्रसिद्धि का उपयोग इस स्वास्थ्य पहल को बढ़ावा देने के लिए किया गया था।
यही नहीं, इस कार्यक्रम को भारत में प्रचारित करने के लिए दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (DTC) ने अपने बसों पर इसके विज्ञापन भी लगाए थे। उस समय दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री थीं शीला दीक्षित। तो क्या अब कांग्रेस यह स्वीकार करेगी कि उनकी सरकार USAID के समर्थन से चल रहे कार्यक्रमों का प्रचार कर रही थी?
USAID का असली खेल और विपक्ष की चुप्पी
जब विपक्ष झूठा प्रचार कर रहा है, तब वह यह नहीं बताता कि USAID ने हाल ही में भारत के चुनावों में दखल देने के लिए $21 मिलियन (₹182 करोड़) की फंडिंग दी। यह पैसा कुछ NGOs और संस्थाओं को इस बहाने दिया गया कि भारत में “वोटर टर्नआउट” बढ़ाया जाए। लेकिन हकीकत यह है कि इस फंडिंग के पीछे का असली मकसद अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को वोटिंग प्रक्रिया में शामिल करवाना था।
सवाल यह उठता है कि अगर कांग्रेस वाकई में USAID के दखल को लेकर इतनी चिंतित है, तो उन्होंने इस विदेशी फंडिंग के खिलाफ कोई आवाज़ क्यों नहीं उठाई?
PLS SPREAD MAX 🙏
Piddis dancing like 🐸s CLAIM that .@smritiirani Ji was Ambassador of USAID once & now BJP is on backfoot.
GHANTA😂
FACTS🔥
Smriti Ji WASN’T NEVER OFFICIAL “AMBASSADOR” for USAID but ONLY GOODWILL AMBASSADOR FOR a SPECIFIC PROGRAM.
Role: Smriti Ji was… pic.twitter.com/wQdjbqMRIK
— BhikuMhatre (@MumbaichaDon) February 19, 2025
सच्चाई जनता के सामने है!
अब जनता को यह समझने की जरूरत है कि यह पूरा मामला सिर्फ एक झूठा नैरेटिव फैलाने का प्रयास था। विपक्ष ने यह प्रोपेगेंडा केवल इसलिए फैलाया ताकि वह अपने खुद के पाप छुपा सके और बीजेपी की छवि खराब कर सके।
लेकिन सच्चाई यह है कि स्मृति ईरानी और USAID के बीच कोई सीधा संबंध नहीं था। वे WHO द्वारा एक स्वास्थ्य कार्यक्रम की गुडविल एंबेसडर थीं, और यह कार्यक्रम कांग्रेस के शासनकाल में दिल्ली में सफलतापूर्वक चलाया गया था।
अब मोदी सरकार क्या करेगी?
मोदी सरकार हमेशा से राष्ट्रवाद और भारतीय संप्रभुता के लिए प्रतिबद्ध रही है। जब यह खुलासा हुआ कि USAID ने भारतीय चुनावों को प्रभावित करने के लिए करोड़ों रुपये की फंडिंग दी है, तो यह स्पष्ट हो गया कि भारत को कमजोर करने के लिए विदेशी ताकतें लगातार षड्यंत्र कर रही हैं।
इसलिए, यह संभव है कि सरकार विदेशी फंडिंग प्राप्त करने वाले NGOs की सख्त जांच करे और उन संगठनों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करे जो भारत के लोकतंत्र में हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहे हैं।
विपक्ष की साजिश नाकाम!
अब समय आ गया है कि विपक्ष की इस झूठी राजनीति और विदेशी एजेंडे को पूरी तरह से बेनकाब किया जाए। स्मृति ईरानी और USAID को जोड़कर विपक्ष ने एक और झूठ गढ़ने की कोशिश की, लेकिन तथ्य स्पष्ट रूप से बताते हैं कि यह आरोप पूरी तरह से आधारहीन है।
जनता को अब यह पहचानना होगा कि विपक्ष अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है, और झूठ ही उनकी आखिरी उम्मीद है। लेकिन राष्ट्रवादी ताकतें सतर्क हैं, और अब कोई भी भारत की अखंडता और संप्रभुता पर हमला नहीं कर सकता। मोदी सरकार जल्द ही इन देश-विरोधी साजिशों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी, और हर विदेशी दलाल को कानून के शिकंजे में लाया जाएगा!